Suryakant Tripathi Nirala – Nav tan kanak kiran phooti hai
नव तन कनक-किरण फूटी है नव तन कनक-किरण फूटी है। दुर्जय भय-बाधा छूटी है। प्रात धवल-कलि गात निरामय मधु-मकरन्द-गन्ध विशदाशय,
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नव तन कनक-किरण फूटी है नव तन कनक-किरण फूटी है। दुर्जय भय-बाधा छूटी है। प्रात धवल-कलि गात निरामय मधु-मकरन्द-गन्ध विशदाशय,
Read Moreघन तम से आवृत धरणी है घन तम से आवृत धरणी है; तुमुल तरंगों की तरणी है। मन्दिर में बन्दी
Read Moreअवकाश वाली सभ्यता मैं रात के अँधेरे में सिताओं की ओर देखता हूँ जिन की रोशनी भविष्य की ओर जाती
Read Moreशोक की संतान हृदय छोटा हो, तो शोक वहां नहीं समाएगा। और दर्द दस्तक दिये बिना दरवाजे से लौट जाएगा।
Read Moreभगवान के डाकिए पक्षी और बादल, ये भगवान के डाकिए हैं जो एक महादेश से दूसरें महादेश को जाते हैं।
Read Moreक्यों मुझको तुम भूल गये हो क्यों मुझको तुम भूल गये हो? काट डाल क्या, मूल गये हो। रवि की
Read Moreपाप तुम्हारे पांव पड़ा था पाप तुम्हारे पांव पड़ा था, हाथ जोड़कर ठांव खड़ा था। विगत युगों का जंग लगा
Read Moreनव जीवन की बीन बजाई नव जीवन की बीन बजाई। प्रात रागिनी क्षीण बजाई। घर-घर नये-नये मुख, नव कर, भरकर
Read Moreतुम ही हुए रखवाल तुम ही हुए रखवाल तो उसका कौन न होगा? फूली-फली तरु-डाल तो उसका कौन न होगा?
Read Moreमानव का मन शान्त करो हे मानव का मन शान्त करो हे! काम, क्रोध, मद, लोभ दम्भ से जीवन को
Read Moreवे कह जो गये कल आने को वे कह जो गये कल आने को, सखि, बीत गये कितने कल्पों। खग-पांख-मढी
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