Suryakant Tripathi Nirala – Kaun gumaan karo zindagi ka
कौन गुमान करो जिन्दगी का कौन गुमान करो जिन्दगी का? जो कुछ है कुल मान उन्हीं का। बाँधे हुए घर-बार
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कौन गुमान करो जिन्दगी का कौन गुमान करो जिन्दगी का? जो कुछ है कुल मान उन्हीं का। बाँधे हुए घर-बार
Read Moreये दुख के दिन काटे हैं जिसने ये दुख के दिन काटे हैं जिसने गिन गिनकर पल-छिन, तिन-तिन। आँसू की
Read Moreवासना-समासीना, महती जगती दीना वासना-समासीना, महती जगती दीना। जलद-पयोधर-भारा, रवि-शशि-तारक-हारा, व्योम-मुखच्छबिसारा शतधारा पथ-हीना। ॠषिकुल-कल-कण्ठस्तुति, दिव्य-शस्य-सकलाहुति, निगमागम-शास्त्रश्रुति रासभ-वासव-वीणा।
Read Moreकरघा हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है। हर ज़िन्दगी किसी न किसी ज़िन्दगी से मिल कर
Read Moreपर्वतारोही मैं पर्वतारोही हूँ। शिखर अभी दूर है। और मेरी साँस फूलनें लगी है। मुड़ कर देखता हूँ कि मैनें
Read Moreमृत्ति-तिलक सब लाए कनकाभ चूर्ण, विद्याधन हम क्या लाएँ? झुका शीश नरवीर ! कि हम मिट्टी का तिलक चढ़ाएँ ।
Read Moreवलि की खेती जो अनिल-स्कन्ध पर चढ़े हुए प्रच्छन्न अनल ! हुतप्राण वीर की ओ ज्वलन्त छाया अशेष ! यह
Read Moreअमृत-मंथन १ जय हो, छोड़ो जलधि-मूल, ऊपर आओ अविनाशी, पन्थ जोहती खड़ी कूल पर वसुधा दीन, पियासी । मन्दर थका,
Read Moreअनिल बिस्वास के लिए हरेक हर्फ़े-तमन्ना इस इज़्तिरार में है कि फिर नसीब हो दरबारे-यारे-बंदः नवाज़ हर इक ग़ज़ल का
Read Moreऔर फिर एक दिन यूँ ख़िज़ाँ आ गई और फिर इक दिन यूं ख़िज़ां आ गई आबनूसी तनों के बरहना
Read Moreबालीं पे कहीं रात ढल रही है बालीं पे कहीं रात ढल रही है या शम्अ पिघल रही है पहलू
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