Hindi Poetry

Suryakant Tripathi Nirala – Sehaj sehaj kar do


सहज-सहज कर दो

सहज-सहज कर दो;
सकलश रस भर दो।

ठग ठगकर मन को
लूट गये धन को,
ऐसा असमंजस, धिक
जीवन-यौवन को;
निर्भय हूँ, वर दो।

जगज्जाल छाया,
माया ही माया,
सूझता नहीं है पथ
अन्धकार आया;
तिमिर-भेद शर दो।