Hindi Poetry

Faiz Ahmed Faiz – Aaj ik harf ko fir

आज इक हरफ़ को फिर


आज इक हरफ़ को फिर ढूंढता फिरता है ख़्याल
मध-भरा हरफ़ कोई ज़हर-भरा हरफ़ कोई
दिलनशीं हरफ़ कोई कहर-भरा हरफ़ कोई
हरफ़े-उलफ़त कोई दिलदारे-नज़र हो जैसे
जिससे मिलती है नज़र बोसा-ए-लब की सूरत
इतना रौशन कि सरे-मौजा-ए-ज़र हो जैसे
सोहबते-यार में आग़ाज़े-तरब की सूरत
हरफ़े-नफ़रत कोई शमशीरे-ग़ज़ब हो जैसे
ता-अबद शहरे-सितम जिससे तबह हो जायें
इतना तारीक कि शमशान की शब हो जैसे
लब पे लाऊं तो मेरे होंठ सियह हो जायें


आज हर सुर से हर इक राग का नाता टूटा
ढूंढती फिरती है मुतरिब को फिर उसकी आवाज़
जोशिशे-दर्द से मजनूं के गरेबां की तरह
आज हर मौज हवा से है सवाली ख़िलकत
ला कोई नग़मा कोई सौत तेरी उम्र दराज़
नौहा-ए-ग़म ही सही शोरे-शहादत ही सही
सूरे-महशर ही सही बांगे-क्यामत ही सही

(आग़ाज़े-तरब=ख़ुशी की शुरुआत, ता-अबद=
सदा के लिए, ख़िलकत=दुनिया, सौत=कोड़ा,
सूरे-महशर=तुरही वाजा जो क्यामत के दिन
बजेगा, बांगे-क़यामत=क्यामत की आवाज़)