Ramdhari Singh Dinkar – Ateet ke dwaar par
अतीत के द्वार पर ‘जय हो’, खोलो अजिर-द्वार मेरे अतीत ओ अभिमानी! बाहर खड़ी लिये नीराजन कब से भावों की
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अतीत के द्वार पर ‘जय हो’, खोलो अजिर-द्वार मेरे अतीत ओ अभिमानी! बाहर खड़ी लिये नीराजन कब से भावों की
Read Moreकरघा हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है। हर ज़िन्दगी किसी न किसी ज़िन्दगी से मिल कर
Read Moreपर्वतारोही मैं पर्वतारोही हूँ। शिखर अभी दूर है। और मेरी साँस फूलनें लगी है। मुड़ कर देखता हूँ कि मैनें
Read Moreमृत्ति-तिलक सब लाए कनकाभ चूर्ण, विद्याधन हम क्या लाएँ? झुका शीश नरवीर ! कि हम मिट्टी का तिलक चढ़ाएँ ।
Read Moreवलि की खेती जो अनिल-स्कन्ध पर चढ़े हुए प्रच्छन्न अनल ! हुतप्राण वीर की ओ ज्वलन्त छाया अशेष ! यह
Read Moreअमृत-मंथन १ जय हो, छोड़ो जलधि-मूल, ऊपर आओ अविनाशी, पन्थ जोहती खड़ी कूल पर वसुधा दीन, पियासी । मन्दर थका,
Read Moreपटना जेल की दीवार से मृत्यु-भीत शत-लक्ष मानवों की करुणार्द्र पुकार! ढह पड़ना था तुम्हें अरी ! ओ पत्थर की
Read Moreअवकाश वाली सभ्यता मैं रात के अँधेरे में सिताओं की ओर देखता हूँ जिन की रोशनी भविष्य की ओर जाती
Read Moreशोक की संतान हृदय छोटा हो, तो शोक वहां नहीं समाएगा। और दर्द दस्तक दिये बिना दरवाजे से लौट जाएगा।
Read Moreभगवान के डाकिए पक्षी और बादल, ये भगवान के डाकिए हैं जो एक महादेश से दूसरें महादेश को जाते हैं।
Read Moreजमीन दो, जमीन दो सुरम्य शान्ति के लिए, जमीन दो, जमीन दो, महान् क्रान्ति के लिए, जमीन दो, जमीन दो
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