Gulzar – Mai kaaynaat mein
मैं कायनात में सय्यारों में भटकता था …..
धुएँ में ,धूल में उलझी हुई किरण की तरह
मैं इस जमीं पे भटकता रहा हूँ सदियों तक
गिरा है वक्त से कट कर जो लम्हा
उसकी तरह …………
वतन मिला तो गली के लिए भटकता रहा
गली में घर का निशाँ तलाश करता रहा बरसों
तुम्हारी रूह में अब ,जिस्म में भटकता हूँ !
लबों से चूम लो ,आँखों से थाम लो मुझको
तुम्हारी कोख से जनमूँ तो फ़िर पनाह मिले !!