Hindi Poetry

Ramdhari Singh Dinkar – Mriti tilak

मृत्ति-तिलक

सब लाए कनकाभ चूर्ण,
विद्याधन हम क्या लाएँ?
झुका शीश नरवीर ! कि हम
मिट्टी का तिलक चढ़ाएँ ।

भरत-भूमि की मृत्ति सिक्त,
मानस के सुधा-क्षरण से
भरत-भूमि की मृत्ति दीप्त,
नरता के तपश्चरण से ।

गंधवती, शुचि रसा कुक्षि से,
मलय उगानेवाली ।
कामधेनु-कल्पद्रुम-सी यह,
वरदायिनी निराली ।

पारिजात से भी सुरभित,
यह अरुण कुंकुम से ।
यह मिट्टी अनमोल कनक से,
मणि-मुक्ता-विद्रुम से ।

भूप कहाकर भी न भूमि का,
प्रेम सभी पाते हैं ।
मुकुटवान् इसकी चुटकी भर,
रज को ललचाते हैं।

जनता के हाथों चढ़ता है,
जिसे ज्योति का टीका।
उसी भाग्यशाली को मिलता,
आशीर्वाद मही का।

तन के त्रासक को न, मृत्ति के
उर-पुर के जेता को।
मिट्टी का हम तिलक चढ़ाते,
स्पृहामुक्त नेता को।

जय उनकी, जो नर निरीह,
घूसर जन के नायक हैं।
हम विद्याधन विप्र मृत्ति
की महिमा के गायक हैं।

(1949 ई.)