Mirza Ghalib – Dil hai dil agar usko bashar hai kya kahiye
दिया है दिल अगर उसको बशर है क्या कहये
हुआ रकीब तो हो नामाबर है क्या कहये
ये ज़िद कि आज न आवे और आये बिन न रहे
कज़ा से शिकवा हमें किस कदर है क्या कहये
रहे है यूं गहो-बेगह कि कूए-दोसत को अब
अगर न कहये कि दुशमन का घर है क्या कहये
ज़हे-करिशमा कि यूं दे रखा है हमको फ़रेब
कि बिन कहे ही उन्हें सब ख़बर है, क्या कहये
समझ के करते हैं बाज़ार में वो पुरिसश-ए-हाल
कि ये कहे कि सर-ए-रहगुज़र है क्या कहये
तुम्हें नहीं है सर-ए-रिशता-ए-वफ़ा का ख़याल
हमारे हाथ में कुछ है मगर है क्या कहये
उन्हें सवाल पे ज़ोअमे-जुनूं है कयूं लड़िये
हमें जवाब से कत-ए-नज़र है, क्या कहये
हसद सज़ा-ए-कमाल-ए-सुख़न है क्या कीजे
सितम बहा-ए-मताअ-ए-हुनर है क्या कहये
कहा है किसने कि ‘ग़ालिब’ बुरा नहीं लेकिन
सिवाय इसके कि आशुफ़ता-सर है क्या कहये