Ramdhari Singh Dinkar – Bharat ka aagman
भारत का आगमन
कुछ आये शर-चाप उठाये राग प्रलय का गाते,
मानवता पर पड़े हुए पर्वत की धूल उड़ाते ।
कुछ आये आसीन अनल से भरे हुए झोंकों पर,
गाँथे हुए मुकुट-मुंडों को बरछों की नोकों पर ।
कूछ आये तोलते कदम को मणि-मुक्ता, सोने से,
कुछ आये बाँधते जगत का मन जादू-टोने से ।
दानदक्ष अंजलि में सबके लिए लिये कल्याण,
सहज, धीर गति से आये, बस, एक तुम्हीं गणवान ।
तुम आये, जैसे आते सावन के मेघ गगन में,
तुम आये, जैसे आता हो सन्यासी मधुवन में ।
तुम आये, जैसे आवे जल-ऊपर फूल कमल का,
तुम आये, भू पर आवे ज्यों सौरभ नभ-मंडल का ।
निज से विरत, सकल मानवता के हित में अनुरत-से,
भारत ! राजभवन में आओ, सचमुच, आज भरत-से ।
हवन-पूत कर में सुदण्ड नव, जटाजूट पर ताज,
जगत देखने को आयेगा, सन्यासी का राज ।
(1948)